शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र (Shiv Panchakshar Stotra) संस्कृत में रचित एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित स्तोत्र है, जिसका गहरा संबंध भगवान शिव से है। यह स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है और इसमें शिव के पवित्र पांच अक्षरों – “न”, “म”, “शि”, “वा”, और “य” की प्रमुखता दी गई है। प्रत्येक अक्षर विशेष रूप से भगवान शिव के किसी न किसी विशेष रूप का प्रतिनिधित्व करता है और उनके दिव्य गुणों को उजागर करता है।
संक्षेप में, शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र न केवल भगवान शिव की अनंत महिमा का बखान करता है बल्कि आध्यात्मिक और धार्मिक जीवन में इसका महत्वपूर्ण स्थान भी है। यह स्तोत्र भक्तों के बीच अत्यधिक श्रद्धा और विश्रांति के साथ पढ़ा जाता है और पौराणिक महत्व के कारण इसकी प्रतिष्ठा अव्यक्त है
शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र का पाठ
शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र हिन्दू धर्म में भगवान शिव की स्तुति का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान शिव की महिमा और उनकी अनंत शक्तियों का वर्णन करता है, जिसको पढ़ने से भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है। इस स्तोत्र के पांच पंक्तियों में ‘न’ ‘म’ ‘शि’ ‘वा’ ‘य’ इन पाँच अक्षरों का समावेश होता है, इसलिए इसे पञ्चाक्षर स्तोत्र कहा जाता है।
शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र का अर्थ:
- “नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नःकाराय नमः शिवाय ॥”
- भगवान शिव का वंदन किया गया है, जो नागों का हार धारण करते हैं, जिनकी तीन आँखें हैं, जो अपने शरीर पर विभूति लगाते हैं, जो महेश्वर हैं, शाश्वत और शुद्ध हैं, और दिगम्बर हैं। यहाँ “न” अक्षर का महत्व बताया गया है।
- “मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय । मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मःकाराय नमः शिवाय ॥”
- भगवान शिव का वंदन किया गया है, जिनके मस्तक पर गंगा विराजमान है, जो नन्दीश्वर के स्वामी हैं, जिनकी पूजा मन्दार पुष्पों से होती है। यहाँ “म” अक्षर का महत्व बताया गया है।
- “शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय । श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिःकाराय नमः शिवाय ॥”
- भगवान शिव का वंदन किया गया है, जो गौरी के मुखकमल के सूर्य हैं, जिन्होंने दक्ष यज्ञ का विनाश किया, जो नीलकण्ठ और वृषभध्वज हैं। यहाँ “शि” अक्षर का महत्व बताया गया है।
- “वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय । चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वःकाराय नमः शिवाय ॥”
- भगवान शिव का वंदन किया गया है, जिनकी वंदना वसिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनि और देवता करते हैं, जिनकी आँखें चन्द्र, सूर्य और अग्नि हैं। यहाँ “व” अक्षर का महत्व बताया गया है।
- “यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय । दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यःकाराय नमः शिवाय ॥”
- भगवान शिव का वंदन किया गया है, जो यज्ञस्वरूप हैं, जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक धनुष है, जो सनातन हैं, दिव्य और दिगम्बर हैं। यहाँ “य” अक्षर का महत्व बताया गया है।
इस प्रकार, शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है और उनके अनुग्रह को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है।
इस स्तोत्र के नियमित पाठ से अनेक लाभ होते हैं। माना जाता है कि शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र के नियमित उच्चारण से व्यक्तियों के जीवन में शांति, समृद्धि और स्वास्थ की प्राप्ति होती है। इससे मानसिक तनाव और चिंता का निवारण होता है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। भक्तगण इसे रोजाना सुबह और शाम में उच्चारित करते हैं ताकि दिनभर की ऊर्जा सकारात्मक बनी रहे।
सांस्कृतिक दृष्टिकोन से यह स्तोत्र भारतीय धरोहर का एक महत्वपूर्ण अंग है। विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों में इसके विविध रूपों और तरीकों से उच्चारण का चलन है। इसका उच्चारण संगीत, नृत्य और कला के विभिन्न रूपों में भी किया जाता है, जो इसकी व्यापकता और महत्ता को दर्शाता है।
संपूर्णतः, शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है, जिसने धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप में समाज को एकीकृत किया है।